एफटीआईआई के छात्रों का संघर्ष हमारा संघर्ष
है!
एफटीआईआई के छात्रों के संघर्ष का साथ दो!
साथियो!
आपको पता होगा कि एफटीआईआई (भारतीय फिल्म व टेलीविजन संस्थान), पुणे के छात्र पिछले करीब दो महीने से इस
संस्थान को बर्बाद करने की फासीवादी साज़िशों के विरुद्ध लड़ रहे हैं। आपको यह भी
पता होगा कि राधे माँ और आसाराम जैसे अपराधी पाखण्डी बाबाओं और ‘माताओं’
के
भक्त, हनुमान चालीसा यन्त्र जैसे फ्रॉड का प्रचार करने वाले, ‘खुली
खिड़की’ और ‘जंगल लव’ जैसी सॉफ्ट
पॉर्न फिल्मों में काम करने वाले गजेन्द्र चौहान को एफटीआईआई का अध्यक्ष बना दिया
गया है, जिनका मानना है कि हर फिल्म जो कमाई कर ले वह ए-ग्रेड फिल्म होती है!
आपको शायद यह भी पता होगा कि डॉक्युमेण्ट्री फिल्म और फीचर फिल्म में फर्क न जानने
वाले लोगों को एफटीआईआई सोसायटी में घुसा दिया गया है! ऐसे में, इस
शानदार संस्थान का भविष्य अन्धकार में पड़ गया है, जिसका रिश्ता
कभी ऋत्विक घटक, अदूर गोपालकृष्णन, श्याम बेनेगल
जैसे लोगों से रहा है। ये छात्र किसी विशिष्ट विचारधारा या राजनीति वाले व्यक्ति
को संस्थान का अध्यक्ष बनाने के लिए नहीं लड़ रहे हैं, जैसा कि भाजपा
सरकार प्रचार कर रही है! पहले भी भाजपा की विचारधारा से नज़दीकी रखने वाली तमाम
हस्तियाँ, जैसे कि विनोद खन्ना, इस संस्थान की बागडोर सम्भाल चुकी हैं।
इसके अलावा, कोई महामूर्ख ही कहेगा कि श्याम बेनेगल,
अदूर
गोपालकृष्णन, आदि वामपंथी या नक्सलाइट हैं! मगर ये सभी
कम-से-कम वास्तविक कलाकार थे! अभी जिन लोगों को एफटीआईआई में घुसाया जा रहा है,
उनके
पास न तो फिल्म कला की कोई समझदारी है और न ही इस संस्थान की शानदार विरासत का वहन
करने की योग्यता व दृष्टि। इसलिए, ये छात्र इस संस्थान को
फिल्म-अज्ञानियों के हाथों तबाह होने से बचाने के लिए लड़ रहे हैं; ये
छात्र अध्यक्ष से लेकर एफटीआईआई सोसायटी में नियुक्तियों की प्रक्रिया को पारदर्शी
बनाने के लिए लड़ रहे हैं; ये छात्र एक शानदार विरासत को तुच्छता
और अज्ञान के हवाले करने के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं! अगर एफटीआईआई की बागडोर ऐसे लोगों
के हाथों में आयी तो यह शानदार कलात्मक व मनोरंजक फिल्मों बनाने वाले लोगों को
तैयार करने वाले संस्थान की बजाय भाजपा सरकार के लिए प्रोपगैण्डा करने वाला
संस्थान बन जायेगा। यह इस संस्थान की हत्या के समान होगा! इसलिए हम एफटीआईआई छात्रों
के संघर्ष का दिली और पुरज़ोर समर्थन करते हैं!
साथियो! हमें यह भी समझना चाहिए कि संस्कृति और
शिक्षा के संस्थानों को फासीवादी प्रचार का उपकरण बनाने का यह पहला और अन्तिम
प्रयास नहीं है। इसके पहले ‘भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद्’
का
अध्यक्ष एक ऐसे व्यक्ति को बना दिया गया जो कि नरेन्द्र मोदी को ईश्वर का अवतार
मानता है (मज़ाक में नहीं, बल्कि वाकई वह ऐसा मानता है!); यही
हाल एनसीईआरटी का किया गया; राजस्थान की पाठ्यपुस्तकों में
बलात्कार के आरोपी आसाराम बापू और अरबों का धन्धा करने वाले बाबा रामदेव को भारत
में महान सन्तों में से एक बताया गया है! इन्हीं पाठ्यपुस्तकों से भगतसिंह,
राजगुरू,
सुखदेव
ग़ायब हैं, जबकि संघ के नेताओं को महान शख़्सियत के तौर पर चिन्हित किया गया है,
जिनका
स्वतन्त्रता के संघर्ष में कोई योगदान नहीं था! उल्टे संघ ने अंग्रेज़ों के सामने
पलक-पाँवड़े बिछाने का ही काम किया! अपने ही इतिहास से डरे हुए संघ परिवार के लोगों
ने सत्ता में आते ही उस इतिहास को विकृत करने का काम शुरू कर दिया है! चाहे शिक्षा
के संस्थान हों या फिर संस्कृति के संस्थान, सभी को
योजनाबद्ध तरीके से भगवा रंग में रंगा जा रहा है। अभी एफटीआईआई का नम्बर है,
लेकिन
कल सभी शैक्षणिक संस्थानों और कलात्मक संस्थाओं के साथ भाजपा की नरेन्द्र मोदी
सरकार यही करने वाली है। महाराष्ट्र और गोवा में भी यदि कला अकादमियों, नाट्य
संस्थानों और साहित्यिक निकायों के छात्र, शिक्षक और सदस्य आज ही आवाज़ नहीं उठाते,
आज
ही अगर हम एफटीआईआई के अपने संघर्षरत साथियों के साथ खड़े नहीं होते, तो
कल हमारे साथ भी यही सांस्कृतिक दुराचार होने वाला है।
इसलिए हमें निम्न प्रकार से एफटीआईआई के साथियों
की मदद करनी चाहिएः
1. हमें अपने-अपने विश्वविद्यालयों,
कला
अकादमियों, विभागों आदि में एफटीआईआई के छात्रों के समर्थन
में एक, तीन या पाँच दिनों की प्रतीकात्मक हड़ताल या फिर ‘वॉक
आउट’ का आयोजन करना चाहिए। हम यह बात सिर्फ छात्रों से नहीं बल्कि
शिक्षकों से भी कह रहे हैं।
2. हमें अपने प्रतिनिधि-मण्डल तैयार करके
एफटीआईआई, पुणे भेजना चाहिए और वहाँ के छात्रों को अपना नैतिक और भौतिक समर्थन
प्रदान करना चाहिए।
3. हम एफटीआईआई के छात्र साथियों से भी
अपील करते हैं कि वे एफटीआईआई में एक राष्ट्रीय एकजुटता प्रदर्शन रखें जिसमें वे
उन सभी संगठनों और व्यक्तियों को बुलायें जो कि इस संघर्ष का समर्थन करते हैं।
4. सभी सरोकारी व्यक्तियों व संगठनों को
भाजपा सरकार को विरोध-पत्र फैक्स करना चाहिए।
5. सभी शहरों से प्रसिद्ध
संस्कृतिकर्मियों, बुद्धिजीवियों, आदि के बीच
हस्ताक्षर करा कर विरोध-पत्र को भाजपा सरकार को भेजा जाना चाहिए।
साथियो! याद रखें कि यह संघर्ष अभी एफटीआईआई
में हो रहा है, मगर इसका यह अर्थ नहीं कि यह केवल एफटीआईआई का
संघर्ष है! यह हम सबका संघर्ष है शिक्षा और कला को भगवा फासीवादी प्रचार का यन्त्र
बना देने की साज़िश के ख़िलाफ़! हम आज अपने एफटीआईआई के साथियों के साथ नहीं खड़े
होते तो कल बहुत देर हो जायेगी और कल हमारी बारी आयेगी! इसलिए हम मुम्बई
विश्वविद्यालय के सभी छात्र-छात्राओं व सच्चे शिक्षकों का आह्वान करते हैं कि 18
अगस्त, मंगलवार को सभी एक दिन का सांकेतिक समर्थन वॉक-आउट करते हुए, कालीना
कैम्पस के गेट पर सुबह 11
बजे एकत्र हों!
इंक़लाब ज़िन्दाबाद!
सभी छात्रों, शिक्षकों,
कलाकर्मियों,
संस्कृतिकर्मियों
की एकता ज़िन्दाबाद!
यूनीवर्सिटी कम्युनिटी फॉर डेमोक्रेसी एण्ड
इक्वॉलिटी (यूसीडीई)
सम्पर्कः नारायण 9769903589 ईमेल:
ucde.mu@gmail.com
ब्लॉग: ucde-mu.blogspot.com