रोहित वेमुला की संस्थानिक हत्या से उपजे कुछ अहम सवाल जिनका जवाब जाति-उन्मूलन के लिए ज़रूरी है!

रोहित वेमुला की संस्थानिक हत्या से उपजे कुछ अहम सवाल जिनका जवाब जाति-उन्मूलन के लिए ज़रूरी है!
साथियो,
हैदराबाद विश्वविद्यालय के मेधावी शोधार्थी और प्रगतिशील कार्यकर्ता रोहित चक्रवर्थी वेमुला की संस्थानिक हत्या ने पूरे देश में छात्रों-युवाओं के बीच एक ज़बर्दस्त उथल-पुथल पैदा की है। देश के तमाम विश्वविद्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों और शहरों में छात्रों-युवाओं से लेकर आम नागरिक तक रोहित वेमुला के लिए इंसाफ़ की ख़ातिर सड़कों पर उतर रहे हैं। जैसा कि हमें पता है रोहित वेमुला अम्बेडकर छात्र संघ से जुड़े एक छात्र कार्यकर्ता और शोधार्थी थे जिन्होंने 18 जनवरी को आत्महत्या कर ली थी। मगर यह आत्महत्या नहीं एक हत्या थी जिसमें न तो लहू का सुराग मिलता है और न ही हत्यारे का निशान।
रोहित को किसने मारा?
रोहित और उसके साथी हैदराबाद विश्वविद्यालय के कैम्पस में संघी गुण्डों और फ़ासीवादियों के विरुद्ध लगातार सक्रिय थे। उन्होंने

Protest in MU against HCU admin and Fascist BJP govt


A protest was organised today in Mumbai University, Kalina campus by UCDE, AISA, TISS Joint action committie, Republican...
Posted by University Community For Democracy And Equality on Tuesday, January 19, 2016

ये आत्महत्या नहीं बल्कि सरकार व विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा की गयी हत्या है!

हैदराबाद विश्वविद्यालय में एक दलित छात्र की आत्महत्या
ये आत्महत्या नहीं बल्कि सरकार व विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा की गयी हत्या है!
दोस्तो
आप में से काफी लोग यह जानते होंगे कि अभी कुछ ही दिन पहले हैदराबाद विश्वविद्यालय के पाँच दलित छात्रों को विश्वविद्यालय प्रशासन ने हॉस्टल से बाहर निकाल दिया था। रविवार 17 जनवरी को उन पाँच में से एक छात्र रोहित वेहमुला ने आत्महत्या कर ली है। यह आत्महत्या नहीं बल्कि भाजपा सरकार व विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा अंजाम दी गयी हत्या है। इसे समझने के लिए हमें इस पूरी घटना पर नज़र डाल लेनी चाहिए।
पिछले साल अगस्त में ए.एस.ए.(अम्बेडकर स्टूडेण्ट्स एसोसिएशन) ने हैदराबाद विश्वविद्यालय परिसर में मुज़फ्फरनगर दंगों पर आधारित एक फिल्म की स्क्रीनिंग की थी जिससे कि हिन्दुत्ववादी छात्र संगठन ए.बी.वी.पी. बिदक गया था। इसके बाद ए.बी.वी.पी. के प्रेसिडेंट ने आरोप लगाया था कि उसके साथ ए.एस.ए. के छात्रों ने मारपीट की है। जब उसकी मेडिकल जांच हुई तो सामने आया कि उसके साथ कोई मारपीट नहीं हुई व सिक्योरिटी गार्डों ने भी इस बात की पुष्टि की कि कोई मारपीट नहीं हुई और जिन दलित छात्रों पर आरोप लगाया जा था वे निर्दोष हैं। लेकिन इसके बाद भाजपा के नेता बंगारू दत्तात्रेय ने स्मृति ईरानी को पत्र लिखकर दलित छात्रों पर कार्रवाई करने को कहा। इसी के चलते विश्वविद्यालय प्रशासन ने पांच दलित छात्रों को हॉस्टल से निष्कासित कर दिया।
दोस्तो यह देखा जा सकता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन किसके इशारों पर काम कर रहा है। ये छात्र शुरू से ही नफरत फैलाने वाली दक्षिणपन्थी राजनीति के निशाने पर थे। निकाले जाने के बाद छात्रों ने अपना संघर्ष जारी रखा और वापस बहाली की मांग पर डटे रहे। सर्दी के मौसम में वे खुले आसमान के नीचे अपना संघर्ष जारी रखे हुए थे। लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन और एम.एच.आर.डी. अपने कान में तेल डालकर सोते रहे। इसी का नतीजा है कि एक बेगुनाह नौजवान ने खुद को फाँसी लगा ली। उसका दोष क्या था? यही कि उसने धर्म की राजनीति करने वाले फासीवादियों के खिलाफ आवाज़ उठायी थी। रोहित की मौत की ज़ि‍म्मेदार वे ताकतें हैं जो लोगों के आवाज़ और सवाल उठाने पर रोक लगाना चाहती हैं और आज़ाद विचार रखने वाले लोगों को गुलाम बनाना चाहती हैं। ऐसी ताकतों के खिलाफ संघर्ष आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है। हिन्दुत्ववादी-फासीवाद से संघर्ष करना अब हम और नहीं टाल सकते। इससे पहले कि कई और रोहितों के गले घोंट दिये जाय हमें अपने संघर्ष की तैयारी करनी होगी और हिन्दुत्ववादी-फासीवाद के खिलाफ एक बड़ी ताकत के रूप में खुद को संगठित करना होगा।
इस हत्या के विरोध में अपनी आवाज़ बुलन्द करने के लिए 19 जनवरी मंगलवार के दिन 11-30 बजे मुम्बई यूनीवर्सिटी के मेन गेट पर हो रहे विरोध प्रदर्शन में शामिल हों।
यूनीवर्सिटी कम्युनिटी फ़ॉर डेमोक्रेसी एण्ड इक्वॉलिटी
अखिल भारतीय जाति विरोधी मंच
सम्पर्क- विराट 9619039793, नारायण 9764594057  ईमेलः ucde.mu@gmail.com, ब्लॉगः www.ucde-mu.blogspot.com
फेसबुक पेजः www.facebook.com/ucdemu   www.facebook.com/abjvm



मोदी सरकार का छात्रों के लिए अच्छे दिन का तोहफ़ा - शिक्षा का निजीकरण, फ़ासीवादीकरण और आवाज़ उठाने वाले छात्रों का दमन!

मोदी सरकार का छात्रों के लिए अच्छे दिन का तोहफ़ा

शिक्षा का निजीकरण, फ़ासीवादीकरण और आवाज़ उठाने वाले छात्रों का दमन!


साथियो!

शायद आप जानते ही होंगे कि एफटीआईआई (भारतीय फिल्म व टेलीविजन संस्थान), पुणे के छात्रों ने 139 दिनों की एक शानदार हड़ताल पिछले दिनों लड़ी थी। आपको अब तक गजेन्द्र चौहान का नाम भी अच्छे से याद हो चुका होगा जो राधे माँ और आसाराम जैसे अपराधी पाखण्डी बाबाओं और माताओंके भक्त हैं, हनुमान चालीसा यन्त्र जैसे अन्धविश्वास का प्रचार करते हैं, ‘खुली खिड़कीऔर जंगल लवजैसी सॉफ्रट पॉर्न फिल्मों में काम कर चुके हैं और उनकी इन्हीं “बेहतरीन योग्यताओं को देखते हुए मोदी सरकार द्वारा उन्हें एफटीआईआई का अध्यक्ष बना दिया गया है।  सिर्फ गजेन्द्र चौहान ही नहीं बल्कि एफटीआईआई सोसायटी में चार ऐसे अन्य लोगों को घुसा दिया गया है जो इस शानदार संस्थान में होने की काबिलियत नहीं रखते। 7 जनवरी को जब गजेन्द्र चौहान संस्थान में अपना पहला दौरा करने आये तो वहाँ के छात्रों ने उनका शांतिपूर्ण विरोध करना शुरू किया लेकिन अहंकार में डूबी मोदी सरकार के इशारों पर पुणे पुलिस ने पहले तो छात्रों पर बल प्रयोग किया व बाद में लगभग 40 छात्रों को हिरासत में ले लिया।

ये एक अकेली घटना नहीं है। एक

Protest in Mumbai University against repression of FTII students



A protest demonstration was organized today under the banner of UCDE at main gate of kalina campus, MU against the...
Posted by University Community For Democracy And Equality on Saturday, January 9, 2016

मोदी सरकार का शिक्षा के निजीकरण का कुत्सित षड्यंत्र

मोदी सरकार का शिक्षा के निजीकरण का कुत्सित षड्यंत्र
नॉन नेट फ़ेलोशिप बन्द करने का विरोध करो!

दोस्तो,
7 अक्टूबर को यूनिवर्सिटी ग्राण्ट्स कमिशन (यूजीसी) ने नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट (नेट) पास करके न आने वाले छात्रों की फेलोशिप को ख़त्म कर दिया है। इससे एम.फिल. व पी.एच.डी. करने वाले छात्रों को जो फेलोशिप मिलती थी अब वह मिलनी बन्द हो जाएगी। अभी तक नेट की परीक्षा पास करके न आने वाले एम.फिल. के छात्रों को महीने में 5000 और पी.एच.डी. के छात्रों को महीने में 8000 रुपये की फेलोशिप मिलती थी। इसका सीधा-सीधा असर देशभर के छात्रों पर पड़ेगा और उनके लिए अपनी शिक्षा को जारी रख पाना बेहद मुश्किल हो जायेगा। सभी विश्वविद्यालयों समेत हमारे विश्वविद्यालय में भी छात्रों को बेहद दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा और ग़रीब घर से आने वाले छात्रों को तो पढ़ाई तक छोड़ने पर मजबूर होना पड़ेगा। साफ़ नज़र आ रहा है कि कांग्रेस के बाद अब भाजपा सरकार शिक्षा के बाज़ारीकरण की नीतियों को और भी ज़ोर-शोर के साथ लागू कर रही है। इस घटना के विरोध में दिल्ली में यूजीसी के हेडक्वाटर्स पर छात्रों का संघर्ष जारी है।

एफटीआईआई के छात्रों के संघर्ष का साथ दो!

एफटीआईआई के छात्रों का संघर्ष हमारा संघर्ष है!
एफटीआईआई के छात्रों के संघर्ष का साथ दो!

साथियो!
आपको पता होगा कि एफटीआईआई (भारतीय फिल्म व टेलीविजन संस्थान), पुणे के छात्र पिछले करीब दो महीने से इस संस्थान को बर्बाद करने की फासीवादी साज़िशों के विरुद्ध लड़ रहे हैं। आपको यह भी पता होगा कि राधे माँ और आसाराम जैसे अपराधी पाखण्डी बाबाओं और माताओंके भक्त, हनुमान चालीसा यन्त्र जैसे फ्रॉड का प्रचार करने वाले, ‘खुली खिड़कीऔर जंगल लवजैसी सॉफ्ट पॉर्न फिल्मों में काम करने वाले गजेन्द्र चौहान को एफटीआईआई का अध्यक्ष बना दिया गया है, जिनका मानना है कि हर फिल्म जो कमाई कर ले वह ए-ग्रेड फिल्म होती है! आपको शायद यह भी पता होगा कि डॉक्युमेण्ट्री फिल्म और फीचर फिल्म में फर्क न जानने वाले लोगों को एफटीआईआई सोसायटी में घुसा दिया गया है! ऐसे में, इस शानदार संस्थान का भविष्य अन्धकार में पड़ गया है, जिसका रिश्ता कभी ऋत्विक घटक, अदूर गोपालकृष्णन, श्याम बेनेगल जैसे लोगों से रहा है। ये छात्र किसी विशिष्ट विचारधारा या राजनीति वाले व्यक्ति को संस्थान का अध्यक्ष बनाने के लिए नहीं लड़ रहे हैं, जैसा कि भाजपा सरकार प्रचार कर रही है! पहले भी भाजपा की विचारधारा से नज़दीकी रखने वाली तमाम हस्तियाँ, जैसे कि विनोद खन्ना, इस संस्थान की बागडोर सम्भाल चुकी हैं। इसके अलावा, कोई महामूर्ख ही कहेगा कि श्याम बेनेगल, अदूर गोपालकृष्णन, आदि वामपंथी या नक्सलाइट हैं! मगर ये सभी कम-से-कम वास्तविक कलाकार थे! अभी जिन लोगों को एफटीआईआई में घुसाया जा रहा है, उनके पास न तो फिल्म कला की कोई समझदारी है और न ही इस संस्थान की शानदार विरासत का वहन करने की योग्यता व दृष्टि। इसलिए, ये छात्र इस संस्थान को फिल्म-अज्ञानियों के हाथों तबाह होने से बचाने के लिए लड़ रहे हैं; ये छात्र अध्यक्ष से लेकर एफटीआईआई सोसायटी में नियुक्तियों की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए लड़ रहे हैं; ये छात्र एक शानदार विरासत को तुच्छता और अज्ञान के हवाले करने के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं! अगर एफटीआईआई की बागडोर ऐसे लोगों के हाथों में आयी तो यह शानदार कलात्मक व मनोरंजक फिल्मों बनाने वाले लोगों को तैयार करने वाले संस्थान की बजाय भाजपा सरकार के लिए प्रोपगैण्डा करने वाला संस्थान बन जायेगा। यह इस संस्थान की हत्या के समान होगा! इसलिए हम एफटीआईआई छात्रों के संघर्ष का दिली और पुरज़ोर समर्थन करते हैं!
साथियो! हमें यह भी समझना चाहिए कि संस्कृति और शिक्षा के संस्थानों को फासीवादी प्रचार का उपकरण बनाने का यह पहला और अन्तिम प्रयास नहीं है। इसके पहले भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद्का अध्यक्ष एक ऐसे व्यक्ति को बना दिया गया जो कि नरेन्द्र मोदी को ईश्वर का अवतार मानता है (मज़ाक में नहीं, बल्कि वाकई वह ऐसा मानता है!); यही हाल एनसीईआरटी का किया गया; राजस्थान की पाठ्यपुस्तकों में बलात्कार के आरोपी आसाराम बापू और अरबों का धन्धा करने वाले बाबा रामदेव को भारत में महान सन्तों में से एक बताया गया है! इन्हीं पाठ्यपुस्तकों से भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव ग़ायब हैं, जबकि संघ के नेताओं को महान शख़्सि‍यत के तौर पर चिन्हित किया गया है, जिनका स्वतन्त्रता के संघर्ष में कोई योगदान नहीं था! उल्टे संघ ने अंग्रेज़ों के सामने पलक-पाँवड़े बिछाने का ही काम किया! अपने ही इतिहास से डरे हुए संघ परिवार के लोगों ने सत्ता में आते ही उस इतिहास को विकृत करने का काम शुरू कर दिया है! चाहे शिक्षा के संस्थान हों या फिर संस्कृति के संस्थान, सभी को योजनाबद्ध तरीके से भगवा रंग में रंगा जा रहा है। अभी एफटीआईआई का नम्बर है, लेकिन कल सभी शैक्षणिक संस्थानों और कलात्मक संस्थाओं के साथ भाजपा की नरेन्द्र मोदी सरकार यही करने वाली है। महाराष्ट्र और गोवा में भी यदि कला अकादमियों, नाट्य संस्थानों और साहित्यिक निकायों के छात्र, शिक्षक और सदस्य आज ही आवाज़ नहीं उठाते, आज ही अगर हम एफटीआईआई के अपने संघर्षरत साथियों के साथ खड़े नहीं होते, तो कल हमारे साथ भी यही सांस्कृतिक दुराचार होने वाला है।
इसलिए हमें निम्न प्रकार से एफटीआईआई के साथियों की मदद करनी चाहिएः
1. हमें अपने-अपने विश्वविद्यालयों, कला अकादमियों, विभागों आदि में एफटीआईआई के छात्रों के समर्थन में एक, तीन या पाँच दिनों की प्रतीकात्मक हड़ताल या फिर वॉक आउटका आयोजन करना चाहिए। हम यह बात सिर्फ छात्रों से नहीं बल्कि शिक्षकों से भी कह रहे हैं।
2. हमें अपने प्रतिनिधि-मण्डल तैयार करके एफटीआईआई, पुणे भेजना चाहिए और वहाँ के छात्रों को अपना नैतिक और भौतिक समर्थन प्रदान करना चाहिए।
3. हम एफटीआईआई के छात्र साथियों से भी अपील करते हैं कि वे एफटीआईआई में एक राष्ट्रीय एकजुटता प्रदर्शन रखें जिसमें वे उन सभी संगठनों और व्यक्तियों को बुलायें जो कि इस संघर्ष का समर्थन करते हैं।
4. सभी सरोकारी व्यक्तियों व संगठनों को भाजपा सरकार को विरोध-पत्र फैक्स करना चाहिए।
5. सभी शहरों से प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मियों, बुद्धिजीवियों, आदि के बीच हस्ताक्षर करा कर विरोध-पत्र को भाजपा सरकार को भेजा जाना चाहिए।
साथियो! याद रखें कि यह संघर्ष अभी एफटीआईआई में हो रहा है, मगर इसका यह अर्थ नहीं कि यह केवल एफटीआईआई का संघर्ष है! यह हम सबका संघर्ष है शिक्षा और कला को भगवा फासीवादी प्रचार का यन्त्र बना देने की साज़िश के ख़िलाफ़! हम आज अपने एफटीआईआई के साथियों के साथ नहीं खड़े होते तो कल बहुत देर हो जायेगी और कल हमारी बारी आयेगी! इसलिए हम मुम्बई विश्वविद्यालय के सभी छात्र-छात्राओं व सच्चे शिक्षकों का आह्वान करते हैं कि 18 अगस्त, मंगलवार को सभी एक दिन का सांकेतिक समर्थन वॉक-आउट करते हुए, कालीना कैम्पस के गेट पर सुबह  11 बजे एकत्र हों!

इंक़लाब ज़िन्दाबाद!
सभी छात्रों, शिक्षकों, कलाकर्मियों, संस्कृतिकर्मियों की एकता ज़िन्दाबाद!

यूनीवर्सिटी कम्युनिटी फॉर डेमोक्रेसी एण्ड इक्वॉलिटी (यूसीडीई)

सम्पर्कः नारायण 9769903589 ईमेल: ucde.mu@gmail.com ब्लॉग: ucde-mu.blogspot.com