अहमदनगर में बर्बर दलित-विरोधी अत्याचार के ख़िलाफ़
आवाज़ उठाओ!
दलित मुक्ति की महान परियोजना को अस्मितावाद और
प्रतीकवाद के गड्ढे से बाहर निकालो!
अहमदनगर में 21 अक्टूबर को एक
दलित परिवार के तीन लोगों की बेरहमी से हत्या और उसके बाद में उनके टुकड़े–टुकड़े
करके कुएँ में फ़ेंक दिये जाने के काण्ड ने एक बार फिर महाराष्ट्र की मेहनतकश
आबादी को झकझोर कर रख दिया है। तमाम दलितवादी चुनावी पार्टियाँ अपने संकीर्ण हितों
के लिए इस घटना को भी एक “सुनहरे अवसर” के तौर पर देख रही हैं और दलितों के हित के
नाम पर इसका पूरा फायदा उठाने की कवायद में लग गयी हैं। वहीं पूँजीवादी मीडिया हर
बार की तरह इस बार भी या तो इस घटना पर पर्दा डालने का काम कर रहा है या फिर इस
घटना को महज़ दो परिवारों के बीच आपसी रंजिश का नाम देकर दलितों पर हो रहे
अत्याचारों को ढँकने का प्रयास कर रहा है। लेकिन मेहनतकश दलित आबादी जानती है कि
चाहे मसला कुछ भी हो हर विवाद में अन्त में दलितों को ही इन बर्बर अत्याचारों का
शिकार होना पड़ता है। ऐसा क्यों होता है कि हमेशा ग़रीब दलितों को ही इन बर्बर
काण्डों का निशाना बनाया जाता है? हमेशा सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर
आबादी को ही ये ज़ुल्म क्यों सहने पड़ते हैं?