सांप्रदायिक फासीवाद्यांचे जनतेत फूट पाडण्याचे प्रयत्न हाणून पाडा

शहीदे-आजम भगतसिंहांच्या संदेशाचे स्मरण करा
सांप्रदायिक फासीवाद्यांचे जनतेत फूट पाडण्याचे प्रयत्न हाणून पाडा
जनतेची झुंजार एकता निर्माण करा

मित्रहो,
देशात पुन्हा एकदा जनतेमध्ये धर्माच्या नावाखाली फूट पाडण्याचे कारस्थान रचले जात आहे. देशभरात धार्मिक कट्टरतेच्या आगीला हवा दिली जात आहे. लोक महागाई, बेरोजगारी आणि गरीबीने ग्रासलेले असताना त्यांना रामजादेआणि हरामजादेयांच्यामध्ये विभागण्यात येते आहे. जेव्हा जनता दरवाढ, बेकारी आणि दारिद्र्याने हैराण असते त्याच वेळी अचानक लव जिहाद’, ‘घरवापसीआणि हिंदू राष्ट्र निर्माणाचे पिल्लू कां सोडले जाते, यावर आपण कधी विचार केला आहे? निवडणुका जवळ येतात त्याच वेळी दंगे कां भडकतात? जनता महागाई आणि भ्रष्टाचारामुळे हैराण झालेली असते त्याच वेळी सांप्रदायिक तणाव कां भडकतो? हा केवळ योगायोग आहे का? ज्यामध्ये तोगडिया, ओवेसी, सिंघल किंवा योगी आदित्यनाथ यांच्यासारखे लोक मारले गेले आहेत, असा स्वातंत्र्यानंतरच्या काळातील एक तरी दंगा आपल्याला आठवतो का? दंग्यांमध्ये कधी कुठल्या कट्टर नेत्याचे घर जळाले आहे का? नाही! दंग्यांमध्ये नेहमीच तुमच्या-आमच्यासारखे लोकच मारले जातात, बेघर होतात, अनाथ होतात. होय! आपल्यासारखेच लोक जे आपल्या मुलाबाळांना एक चांगले जीवन देण्यासाठी काबाडकष्ट करीत असतात. ज्यांच्या ताटांमधून एक एक करून भाजी, डाळ गायब होते आहे. ज्यांची तरुण मुले रस्त्यांवर बेरोजगार फिरत आहेत. ज्यांचे भविष्य अधिकाधिक अनिश्चित होते आहे, जे सतत बरबादीच्या दरीत कोसळत आहेत. जेव्हा आपला संयम तुटायची वेळ येते त्याच वेळी मंदिर आणि मशिदीचा मुद्दा उचलला जातो. देशातील धनिकांच्या, अमीरजाद्यांच्या आणि दैत्याकार कंपन्यांच्या पैशांवर चालणारे तमाम राजकीय पक्ष त्याच वेळी धार्मिक कट्टरता भडकवतात. हिंदूंना मुसलमानांचे आणि मुसलमानांना हिंदूंचे शत्रू बनवले जाते आणि आपापसात लढविले जाते. आणि आपण लढतो, हा आपला मूर्खपणा आहे. दंगे होतात, सामान्य माणसं मरतात, आणि सामान्य लोकांच्या चितांवर देशातील अमीरजादे व त्यांचे पक्ष आपल्या पोळ्या भाजून घेतात.
कोणाचे ‘‘अच्छे दिन’’ आणि कोणाचा ‘‘विकास’’?

जादवपुर विश्वविद्यालय के छात्र साथियो! हम तुम्हारे साथ हैं!

जादवपुर विश्वविद्यालय के छात्र साथियो! हम तुम्हारे साथ हैं!

दोस्तो!
जादवपुर विश्वविद्यालय में पिछले कई महीनों से छात्र शानदार संघर्ष चला रहे हैं। अगस्त महीने में एक छात्र के साथ हुई छेड़खानी के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने आरोपियों पर कोई भी कार्रवाई नहीं की। जब छात्रों ने कुलपति और रजिस्ट्रार का घेराव करके इंसाफ़ की माँग की तो रात 2 बजे छात्रों को पुलिस और गुण्डों द्वारा पिटवाया गया। पुलिसकर्मियों द्वारा छात्राओं के साथ बदसलूकी की गयी और तमाम छात्रों को गिरफ्तार किया गया। तब से छात्र लगातार दोषियों को सज़ा दिलवाने और कुलपति के इस्तीफे की माँग कर रहे हैं। इस 5 जनवरी से 12 छात्र अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे हैं लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन अपने हिटलरी रवैये को बनाये हुए है।
जादवपुर विश्वविद्यालय की घटना कोई अकेली घटना नहीं है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान विश्वविद्यालय कैम्पसों में जनवादी स्पेस लगातार कम होता गया है। आज़ादी और जनवाद के लिए मशहूर रहे जादवपुर विश्वविद्यालय, जेएनयू, दिल्ली विश्वविद्यालय, मुम्बई विश्वविद्यालय जैसे विश्वविद्यालयों में भी आज छात्रों का पुलिस, गुण्डों और प्राईवेट “सिक्योरिटी” द्वारा दमन किया जा रहा है। अगर हम एक विचार-विमर्श, अध्ययन चक्र, मूवी शो, गोष्ठी, नुक्कड़ नाटक तक करना चाहें तो विश्वविद्यालय प्रशासन इसकी इजाज़त नहीं देता! मुम्बई विश्वविद्यालय में पिछले वर्ष एक शिक्षक को विश्वविद्यालय प्रशासन ने निलम्बित कर दिया था क्योंकि उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन के भ्रष्टाचार पर सवाल खड़ा किया था। बाद में यूसीडीई के बैनर तले इसके ख़ि‍लाफ़ शानदार छात्र आन्दोलन चलाया और प्रशासन को मजबूर होकर उन्हें वापस लेना पड़ा। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय में भी जायज़ हक़ों के लिए संघर्षरत छात्रों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। विश्वविद्यालय कैम्पस आज पुलिस छावनी नज़र आने लगे हैं। हम छात्रों पर इस तरह नज़र रखी जाती है मानो हम कोई अपराधी हों या समाज के लिए कोई ख़तरा हों, जबकि असली गुण्डे-अपराधी-भ्रष्टाचारी संसद-विधानसभाओं में बैठते हैं और वी-सी- से लेकर पुलिस और नौकरशाह तक उन्हें सलाम ठोंकते हैं! आख़ि‍र क्या कारण है कि इस तरह कैम्पसों से लगातार जनवादी स्पेस खत्म किया जा रहा है क्या कारण है कि कैम्पसों में पुलिस की मौजूदगी लगातार बढ़ती जा रही है
दरअसल, पिछले दो दशकों के दौरान सरकार ने लगातार शिक्षा का बाज़ारीकरण किया है। 1986 में नयी शिक्षा नीतिऔर फिर 1990 में नयी आर्थिक नीतिके लागू होने के बाद से लगातार शिक्षा को बाज़ारू माल बनाया जा रहा है। कॉलेज व हॉस्टल की सीटें लगातार सापेक्षिक रूप से कम हो रही हैं, फीसें लगातार बढ़ रही हैं, कैण्टीन में खाना लगातार महँगा होता जा रहा है, सभी अच्छे व पेशेवर पाठ्यक्रमों को स्ववित्तपोषित (Self-financed) बनाया जा रहा है। जो युवा चाँदी का चम्मच मुँह में लेकर पैदा नहीं हुए उनके लिए उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाना लगातार अधिक से अधिक मुश्किल होता जा रहा है। ज़ाहिर है, आम घरों से आने वाले छात्र और हर इंसाफ़पसन्द छात्र यूँ ही चुपचाप बैठकर सबकुछ सहते नहीं रहेंगे और अपनी आवाज़ उठाएँगे।
इसके अतिरिक्त, विश्वविद्यालय ही वे जगहें होती हैं जहाँ हम इंसाफ़, बराबरी, जनवाद, भाईचारे, स्त्री-पुरुष समानता, सामाजिक न्याय के सिद्धान्तों को सीखते और आत्मसात करते हैं; विश्वविद्यालयों में ही यह विचार पनपा कि अन्याय के विरुद्ध विद्रोह न्यायसंगत है! आज के हुक्मरान जो देश भर में जनविरोधी नीतियाँ लागू कर रहे हैं, जो अदानी-अम्बानी के हाथों बिके हुए हैं, जो भ्रष्टाचार में सिर से पाँव तक डूबे हैं, जो आज देश को साम्प्रदायिकता की आग में झोंक रहे हैं, जो जनता पर हिटलरी तानाशाही थोप देना चाहते हैं; वो डरते हैं कि जनता कल यह बोल उठेगी कि बस! अब बहुत हुई यह तानाशाही, यह लूट, यह अमीरपरस्ती, यह अन्याय!वो डरते हैं और इसीलिए आज विश्वविद्यालय में मौजूद जनवादी स्पेस को ख़त्म करना चाहते हैं, क्योंकि यहीं विद्रोह की आग सुलगती है! क्योंकि हम नौजवान ही इतिहास की दिशा को बदलने वाली अगुवा ताक़त हैं! इसीलिए वो हमसे तालीम, रोज़गार, मुख़ालफ़त करने, प्यार करने, गीत गाने और साँस लेने तक की आज़ादी को छीन लेना चाहते हैं।
इसीलिए आज देश के हुक्मरान हमें दबाने और कुचलने के अपने औज़ारों की धार तेज़ कर रहे हैं। जादवपुर के हमारे बहादुर दोस्त इसी साज़िश का डटकर मुकाबला कर रहे हैं! इसलिए हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम उनके साथ एकजुटता ज़ाहिर करें। हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम उन्हें यहाँ अपनी आवाज़ उठाकर ताक़त और ऊर्जा दें।

छात्र एकता ज़िन्दाबाद! जादवपुर के छात्रों का संघर्ष ज़िन्दाबाद!
अंधकार का युग बीतेगा! जो लड़ेगा वो जीतेगा!
होक्कोलोरबसे होबिप्लबकी ओर!

यूनीवर्सिटी कम्युनिटी फॉर डेमोक्रेसी एण्ड इक्वॉलिटी (यूसीडीई)

सम्पर्क नारायण 9769903589 विराट 9619039793
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