मोदी सरकार का छात्रों के लिए अच्छे दिन का
तोहफ़ा
शिक्षा का निजीकरण, फ़ासीवादीकरण और
आवाज़ उठाने वाले छात्रों का दमन!
साथियो!
शायद आप जानते ही होंगे कि एफटीआईआई (भारतीय
फिल्म व टेलीविजन संस्थान), पुणे के छात्रों ने 139
दिनों की एक शानदार हड़ताल पिछले दिनों लड़ी थी। आपको अब तक गजेन्द्र चौहान का नाम
भी अच्छे से याद हो चुका होगा जो राधे माँ और आसाराम जैसे अपराधी पाखण्डी बाबाओं
और ‘माताओं’ के भक्त हैं, हनुमान चालीसा
यन्त्र जैसे अन्धविश्वास का प्रचार करते हैं, ‘खुली खिड़की’
और ‘जंगल
लव’ जैसी सॉफ्रट पॉर्न फिल्मों में काम कर चुके हैं और उनकी इन्हीं “बेहतरीन
योग्यताओं” को देखते हुए
मोदी सरकार द्वारा उन्हें एफटीआईआई का अध्यक्ष बना दिया गया है। सिर्फ गजेन्द्र चौहान ही नहीं बल्कि एफटीआईआई
सोसायटी में चार ऐसे अन्य लोगों को घुसा दिया गया है जो इस शानदार संस्थान में
होने की काबिलियत नहीं रखते। 7 जनवरी को जब गजेन्द्र चौहान संस्थान
में अपना पहला दौरा करने आये तो वहाँ के छात्रों ने उनका शांतिपूर्ण विरोध करना
शुरू किया लेकिन अहंकार में डूबी मोदी सरकार के इशारों पर पुणे पुलिस ने पहले तो
छात्रों पर बल प्रयोग किया व बाद में लगभग 40 छात्रों को
हिरासत में ले लिया।
ये एक अकेली घटना नहीं है। एक
तरफ मोदी सरकार ने आते ही शिक्षा के निजीकरण की कोशिशें तेज़ कर दी वहीं दूसरी ओर शैक्षणिक संस्थानों का लगातार भगवाकरण किया जा रहा है। पहले, मोदी सरकार ने शिक्षा के बजट में ज़बर्दस्त कटौती की, उसके बाद पीएचडी व एमफिल करने वाले छात्रों की नॉन नेट फेलोशिप बन्द कर दी। नॉन नेट फेलोशिप बन्द करने के विरोध में भी छात्रों ने देशभर में विरोध किया था। दिल्ली में यूजीसी के हेडक्वार्टर पर आन्दोलनकारी पिछले लम्बे समय से डेरा डालकर बैठे हैं। मोदी सरकार छात्रों की जायज़ माँगों को सुनने के बजाय वहाँ भी बल प्रयोग कर रही है। 9 दिसम्बर को जब छात्र रैली कर रहे थे तो पुलिस ने उन पर बर्बर लाठीचार्ज किया, छात्राओं के साथ छेड़छाड़ की व लगभग 150 छात्रों को हिरासत में ले लिया। पर इस बर्बर दमन के बाद भी छात्र वहां अब भी जुटे हुए हैं।
तरफ मोदी सरकार ने आते ही शिक्षा के निजीकरण की कोशिशें तेज़ कर दी वहीं दूसरी ओर शैक्षणिक संस्थानों का लगातार भगवाकरण किया जा रहा है। पहले, मोदी सरकार ने शिक्षा के बजट में ज़बर्दस्त कटौती की, उसके बाद पीएचडी व एमफिल करने वाले छात्रों की नॉन नेट फेलोशिप बन्द कर दी। नॉन नेट फेलोशिप बन्द करने के विरोध में भी छात्रों ने देशभर में विरोध किया था। दिल्ली में यूजीसी के हेडक्वार्टर पर आन्दोलनकारी पिछले लम्बे समय से डेरा डालकर बैठे हैं। मोदी सरकार छात्रों की जायज़ माँगों को सुनने के बजाय वहाँ भी बल प्रयोग कर रही है। 9 दिसम्बर को जब छात्र रैली कर रहे थे तो पुलिस ने उन पर बर्बर लाठीचार्ज किया, छात्राओं के साथ छेड़छाड़ की व लगभग 150 छात्रों को हिरासत में ले लिया। पर इस बर्बर दमन के बाद भी छात्र वहां अब भी जुटे हुए हैं।
पूरी दुनिया में चल रही आर्थिक मन्दी के कारण
आज मुनाफाखोर पूँजीपति हर उस चीज को अपने हाथों में लेने में लगे हैं जिसमें उन्हें
मुनाफा नज़र आ रहा है। शिक्षा और स्वास्थ्य दो ऐसे ही क्षेत्र हैं। यही कारण है कि
लगभग पिछले 30 वर्षों से भारत में भी हर सरकार शिक्षा और
स्वास्थ्य का निजीकरण करती चली आ रही है। अब तो शिक्षा नीति बनाने के लिए भी
इन्हीं मुनाफाखोरों से सलाह ली जा रही है। 2002 में बिड़ला और
अम्बानी, इन दोनों उद्योगपतियों ने देश की शिक्षा नीति बनायी थी जिसके अनुसार
उच्च शिक्षा को पूरी तरह निजी क्षेत्र के हवाले करने की बात की गयी है। उसी के
अनुरूप आगे आने वाले समय में उच्च शिक्षा को पूरी तरह निजी हाथों में देने की
तैयारी चल रही है। और ये तब हो रहा है जब भारत में बारहवीं पास करने वाले 100
बच्चों में से 7 बच्चे ही उच्च शिक्षा तक पहुँच पाते हैं।
मोदी की फ़ासीवादी सरकार शिक्षा के निजीकरण की
प्रक्रिया को कांग्रेसी दलालों से भी तेज़ चला रही है। लेकिन इन्हें पता है कि अगर
नौजवानों के, मज़दूरों के हक-अधिकार छीने जायेंगे तो वो सड़कों
पर उतरेंगे। ऐसा करने से रोकने के लिए उन्हें धार्मिक आधार पर व अन्य आधारों पर
आपस में लड़ाना होगा। शिक्षा के क्षेत्र में लगातार जारी भगवाकरण का मक़सद भी यही
है। पिछले साल मुम्बई विश्वविद्यालय में ही भारतीय विज्ञान कांग्रेस हुई थी जिसमें
अजीबोगरीब अंधविश्वास और मिथकों को विज्ञान सिद्ध करने की कोशिश की गयी। कहा गया
कि आज से 2000 साल पहले भारत के पास उच्च तकनीक के विमान
मौजूद थे। इस साल भी मैसूर में जारी विज्ञान कांग्रेस में यही हो रहा है। एक IAS अधिकारी वहाँ शंख फूंक कर दावा कर रहा
था कि इससे सफेद बालों को काला किया जा सकता है व अन्य सारी बीमारियाँ भी ठीक की
जा सकती हैं। अडाणी, अम्बानी जैसे कॉरपोरेट घरानों की बेशर्मी से
सेवा करने और इस देश के मज़दूरों-मेहनतकशों को तबाहो-बर्बाद करने के लिए यह
अनिवार्य है कि फासीवादी संघ परिवार देश के आम मध्यवर्ग में एक राय का निर्माण
करे। उसके लिए कला, साहित्य, शिक्षा, अकादमिक
जगत और संस्कृति के हर शिखर पर वह कब्ज़ा जमाये! यही कारण है कि वो ऐसे तमाम
महत्वपूर्ण पदों पर नियम कानूनों की परवाह किये बगै़र संघ परिवार की विचारधारा से
निकटता रखने वाले लोगों को बिठा रहे हैं।
ऐसे में आज इंसाफपसन्द छात्रों का कर्तव्य बनता
है कि देश को बर्बाद करने की इनकी साज़िशों के खिलाफ पुरजोर तरीके से संघर्ष करे।
अगर इनकी साज़िशें कामयाब हो गयी तो आगे आने वाले समय में गरीबों-मेहनतकशों के
बच्चे इन कॉलेजों तक कभी पहुँच ही नहीं पायेंगे। फ़ासीवादी ताकतों के विरुद्ध इन
संघर्ष में हमें सिर्फ छात्रों तक ही नहीं बल्कि उस आम मेहनतकश जनता तक भी अपनी
बात पहुँचानी होगी जो असल में इनको हराने की हिम्मत और ताकत रखती है। इतिहास गवाह
है कि धार्मिक कट्टरपंथ हो या फ़ासीवाद, इनका मुकाबला सबसे जुझारू तरीके से
मज़दूर वर्ग ही कर सकता है। इतिहास में हिटलर इसका उदाहरण है जिसकी दुनिया बर्बाद
करने की कुचेष्टाओं को मज़दूर वर्ग ने ही रोका था। आज ISIS के धार्मिक कट्टरपंथी आतंकवाद का
मुकाबला भी सबसे जुझारू तरीके से कुर्दिस्तान के मज़दूर और महिलाएँ कर रही हैं। अगर हमें भी अपने देश को इन
धार्मिक फ़ासीवादियों के हाथ में जाने से रोकना है तो आज से ही जुझारू संघर्ष के
लिए खड़ा होना होगा।
शिक्षा, स्वास्थ्य,
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जन्मसिद्ध अधिकार
फ़ासीवाद का एक इलाज - इंक़लाब ज़िन्दाबाद!
यूनीवर्सिटी कम्युनिटी फॉर डेमोक्रेसी एण्ड
इक्वॉलिटी (यूसीडीई)
सम्पर्कः 9930529380, 9764594057
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